Khatu Shyam Prasad

श्री खाटूश्याम जी

भक्ति बीज पलटे नहीं , जो जुग जाये अनंत

महाभारत काल में लगभग साढ़े पांच हज़ार वर्ष पहले एक महान आत्मा का अवतरण हुआ जिसे हम भीम पौत्र बर्बरीक के नाम से जानते हैं महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की सात्विक और निष्काम तपस्या कर बर्बरीक ने दिव्य बल और तीन तीर व धनुष प्राप्त किए। कुछ वर्ष उपरांत कुरुक्षेत्र में उपलब्ध नामक स्थान पर युद्ध के लिए कौरव और पांडवों की सेनाएं एकत्रित हुई। युद्ध का शंखनाद होने ही वाला था कि यह वृतांत बर्बरीक को ज्ञात हुआ और उन्होंने माता का आशीर्वाद ले युद्धभूमि की तरफ प्रस्थान किया। उनका इरादा था कि युद्ध में जो भी हारेगा उसकी सहायता करूंगा। भगवान श्री कृष्ण को जब यह वृतांत ज्ञात हुआ तो उन्होंने सोचा कि ऐसी स्थिति में युद्ध कभी समाप्त नहीं होने वाला। अतः उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक का मार्ग रोककर उनसे पूछा कि आप कहां प्रस्थान कर रहे हैं। बर्बरीक ने अपना ध्येय बताया कि वह कुरुक्षेत्र जाकर अपना कर्तव्य निर्वाह करेंगे और इस पर ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें अपना कौशल दिखाने को कहा। बर्बरीक ने एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया सिवाय एक पत्ते के जो श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा दिया था। बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वह अपना पैर पत्ते के ऊपर से हटाए वरन् आपका पैर घायल हो सकता है। श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया व बर्बरीक से एक वरदान मांगा। बर्बरीक ने कहा हे यजमान आप जो चाहे मांग सकते हैं मैं वचन का पूर्ण पालन करूंगा। ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने शीश दान मांगा।

यह सुनकर बर्बरीक तनिक भी विचलित नहीं हुए परंतु उन्होंने श्रीकृष्ण को अपने वास्तविक रूप में दर्शन देने की बात की क्योंकि कोई भी साधारण व्यक्ति यह दान नहीं मांग सकता। तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में प्रकट हुए। उन्होंने महाबली, त्यागी, तपस्वी वीर बर्बरीक का मस्तक रणचंडिका को भेंट करने के लिए मांगा और साथ ही वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे। मेरी ही शक्ति तुम में निहित होगी। देवगण तुम्हारे मस्तक की पूजा करेंगे जब तक यह पृथ्वी, नक्षत्र, चंद्रमा तथा सूर्य रहेंगे तब तक तुम, लोगों के द्वारा मेरे श्री श्याम रूप में पूजनीय रहोगे। मस्तक को अमृत से सींचाऔर अजर अमर कर दिया। मस्तक ने संपूर्ण महाभारत का युद्ध देखा एवं युद्ध के निर्णायक भी रहे। युद्ध के बाद महाबली बर्बरीक कृष्ण से आशीर्वाद लेकर अंतर्ध्यान हो गए।

बहुत समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान श्याम के वरदान से भक्तों का उद्धार करने के लिए वह खाटू में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए। एक गाय घर जाते समय रास्ते में एक स्थान पर खड़ी होकर चारों थनों से दूध की धाराएं बहाती थी। जब ग्वाले ने यह दृश्य देखा तो सारा वृत्तांत भक्त नरेश (खंडेला के राजा) को सुनाया। राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया। स्वप्न में भगवान श्री श्याम देव ने प्रकट होकर कहा मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय के थन से दूध निकलता है, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, खुदाई करके विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो। मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो खाटू आएंगे, उनका सब प्रकार से कल्याण होगा। खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत शास्त्रों के अनुसार प्रतिष्ठित कराया गया।

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श्री खाटूश्यामजी के 11 नाम और उनकी महिमा

बर्बरीक (Barbarik):- महाभारत काल में अत्यंत शक्तिशाली गदाधारी भीम के पुत्र घटोत्कच का विवाह नागकन्या मौरवी से हुआ था। घटोत्कच और मौरवी की संतान बर्बरीक थे, जो बाद में श्याम के नाम से प्रसिद्ध हुए।

मौरवी नंदन (Maurvi Nandan):- मौरवी (कामनकांता) की संतान होने के कारण बर्बरीक यानि श्याम बाबा को मौरवी नंदन कहा जाता है। Khatu Shyam मेले के दौरान मौरवी नंदन के जयकारे खूब गूंजते हैं।

तीन बाण धारी (Teen Baan Dhari):- बर्बरीक को महाभारत के युद्ध में उनके महान योगदान के लिए याद किया जाता है, जहाँ उनकी क्षमताओं ने उन्हें अद्वितीय बना दिया था। उन्होंने अपने बाणों की शक्ति और पराक्रम से संपूर्ण ब्रह्माण्ड को विजयी बना दिया था। इसीलिए उन्हें तीन भुजाओं वाला कहा जाता है, जो उनकी अद्वितीय शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। न केवल पृथ्वी पर बल्कि ऊपरी लोकों में भी बर्बरीक जैसा कोई धनुर्धर नहीं था। उनका योगदान और वीरता न केवल अपने समय में बल्कि आज भी हमारे इतिहास में अमर है।

शीश का दानी (Sheesh Ka Daani):- महाभारत युद्ध के दौरान बर्बरीक ने अपनी माँ से आशीर्वाद लेने का अनुरोध किया। माँ ने उसे हारने वाले पक्ष का साथ देने का वचन दिया, जिसका अर्थ था कि जो हारेगा उसकी तरफ से उसे लड़ना होगा। बर्बरीक ने भगवान कृष्ण की शक्ति और विशालता को समझकर उनकी जीत के लिए उनकी ओर से युद्ध लड़ने का निर्णय लिया। जिससे युद्ध का परिणाम कौरवों के पक्ष में हो सके। इस प्रकार उसने ब्राह्मण के भेष में आकर उसका शीश माँगा और अपना शीश दान में दे दिया। इसी उदारता और वीरता के कारण उन्हें श्याम बाबा के शीश का दानी कहा जाता है।

कलियुग के अवतारी (Kalyug Ke Avatari):- भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक का नाम श्याम रखा और यह वरदान भी दिया कि कलियुग में उनकी पूजा की जायेगी। इसीलिए उन्हें कलियुग का अवतार भी कहा जाता है। इस समय कलयुग चल रहा है और ऐसे में श्याम बाबा भक्तों की आस्था का केंद्र हैं। हर साल लाखों भक्त बाबा के दरबार में आते हैं, जो उनकी अनोखी और अद्भुत शक्तियों की प्रासंगिकता को दर्शाता है।

खाटू नरेश (Khatu Naresh):- श्याम बाबा खाटू के अधिपति हैं और खाटू नरेश कहलाते हैं। उनकी दैवीय शक्ति और भक्ति ने उन्हें खाटू का सर्वोच्च नेता बना दिया है। उनका राज्य न केवल भक्तों के मन में बल्कि समाज में भी अद्वितीय सम्मान और प्रेम का प्रतीक है। उनके आशीर्वाद के कारण ही खाटू नरेश अपने भक्तों के दिलों में बसे हैं, जो हर साल उनकी कृपा और आशीर्वाद के लिए उनके दरबार में पहुंचते हैं।

लखदातार (Lakhadatar):- श्याम बाबा की महिमा निराली है. ऐसा कहा जाता है कि जिस पर श्याम बाबा की कृपा हो जाती है वह हर तरह से समृद्ध हो जाता है। इसी मान्यता के कारण श्याम बाबा को लखदातार कहा जाता है। उनके मेले में पश्चिम बंगाल, असम, महाराष्ट्र, पंजाब, गुजरात आदि से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं, जो उनकी प्रसिद्धि और शक्ति को सिद्ध करता है।

लीले का अश्वार (Lele Ka Ashvar):- श्याम बाबा को लीला का घोड़ा कहा जाता है. इसका आधार वीर बर्बरीक का नीले रंग का घोड़ा था, जिसे स्थानीय भाषा में ‘लीला’ भी कहा जाता है। इसी कारण से, उन्हें ‘नीले रंग के घोड़े’ या ‘नीले रंग के घोड़े’ कहा जाता है। उनके घोड़े के रंग का यह अनोखा संयोजन उन्हें और उनके भक्तों को भगवान का साथी बनाता है।

खाटू श्याम (Khatu Shyam):- Khatu Shyam एक ऐसा नाम है जो हर भक्त के दिल में एक खास जगह रखता है। उनका मंदिर न केवल आसपास के क्षेत्रों से बल्कि अन्य राज्यों और देशों से भी भक्तों को आकर्षित करता है। Khatu Shyam के दर्शन करने वाले हमेशा उनकी कृपा और आशीर्वाद पर विश्वास करते हैं, जिससे उनकी भक्ति में गहराई और प्रेम और भी बढ़ जाता है।

हारे का सहारा (Hare Ka Shara):- हर तरफ से निराश व्यक्ति जब श्याम बाबा की भक्ति में लीन हो जाता है तो उसके सभी दुख और पाप खत्म हो जाते हैं। उनके आशीर्वाद से ही उनके जीवन की अंधेरी राह में रोशनी की किरणें चमकने लगती हैं। इसलिए, श्याम बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है, क्योंकि जो लोग उनकी भक्ति में विश्वास और आस्था रखते हैं, वे हमेशा उनके आशीर्वाद पर विश्वास करते हैं, जो उन्हें सभी कठिनाइयों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है।

श्री श्याम (Shree Shyam):- श्री कृष्ण ने बर्बरीक को शीश का दान मांगने का कारण बताया. युद्ध से पहले युद्धभूमि की पूजा के लिए तीनों लोकों में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश का बलिदान देना पड़ता है। बर्बरीक ने उनसे युद्ध को अंत तक देखने और उन्हें अपना नाम देने का अनुरोध किया। श्रीकृष्ण ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। उनके बलिदान की ख़ुशी और उदाहरण को देखकर बर्बरीक को श्याम नाम से सम्मानित किया गया।

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